संघर्ष

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मंगलवार, 31 अगस्त 2010

 
 
 
 
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वन्दे मातरम दोस्तों,
गाल गर बजाने से, बात अगर बन जाती,
मेहनत कर दुनिया मैं, रोटी कमाता कौन,
बातों से खेतों मैं, फसल गर होती पैदा,
जेठ की दोपहरी मैं, हल फिर चलाता कौन,
बातें ही बनाने से, महल अगर बन जाते,
मिटटी मैं मिटटी हो, गारा बनाता कौन,
बातें ही बनाने से, बदन अगर ढक जाता,
कपड़ा बनाने को, चरखा चलाता कौन,
बातें ही बनाने से, नहरें अगर खुद जाती,
जलते रेगिस्तान मैं भी, हरियाली लाता कौन,
गाल ही बजाने से, युद्ध अगर जीते जाते,
सरहद पर जाकर के, लहू फिर बहाता कौन,
गाल ही बजाते रहते, गर हमारे अमर शहीद,
सोचो भारत माँ को, आजाद कराता कौन??

बुधवार, 11 अगस्त 2010

"""रूहे शहीदा शर्मिंदा हैं"""




वन्दे मातरम दोस्तों,

आजादी खुद पर शरमाई,
वक्त ने ली कैसी अंगडाई,
रूहे शहीदा शर्मिंदा हैं,
जिन्दगी किस दौर पे आई,

क्या इसीलिए हम फांसी चढ़ गये ,
क्या यही स्वप्न हमारा था,
तुम लूट लूट कर इसको खाओ,
जो हमे जान से प्यारा था,

तुम लालकिले फहराने तिरंगा,
सुरछा गार्डों के संग आते हो,
देश की खाक हिफाजत करोगे,
अपनी जान बचा नही पाते हो,

उग्रबाद के आगे टेकते घुटने,
तुम्हे जान आन से प्यारी है,
खुद को समझते देश से ऊपर,
इसलिए ही हार तुम्हारी है,

बेबस क्यों लाल भूमि के, शत्रु क्यों हो रहा दबंग???
क्योंकि देश पे मर मिटने की अब, नेताओं मैं नही उमंग,
लाल किले पर तिरंगा, फहराओ तुम शान से,
इतना प्यार मत करो, अपनी इस जान से,
अगर मौत भी आये तो, इक मिशाल बन जाओ तुम,
तुम भारत माँ के हो सपूत, धरा गगन पर छाओ तुम,
फिर कोई रूबिया प्रकरण, दौहराया ना जो जायेगा,
उग्रवाद इस देश से, तब ही तो मिटने पायेगा,
देश द्रोही को मारने मैं, मिनट ना एक बर्बाद करो,
आजादी की खातिरफांसी चढ़ गये, इतना तो तुम याद करो,


शहीदेआजम भगत सिंह ने कहा था -‘‘भारतीय मुक्ति संग्राम तब तक चलता रहेगा जब तक मुट्ठी भर शोषक लोग अपने फायदे के लिए आम जनता के श्रम का शोषण करते रहेंगे। शोषक चाहे ब्रिटिश हों या भारतीय।

सोमवार, 9 अगस्त 2010

......बहुत दिन बीते.......



वन्दे मातरम दोस्तों,

......बहुत दिन बीते.......

थाली मैं दाल को आये हुए,
पत्नी को हरी सब्जी बनाये हुए,
खाने मै सलाद को खाए हुए,
......बहुत दिन बीते.......

रोटी का साथ देखो मक्खन ने छोड़ा,
दूध की खातिर बिटिया का दिल तोडा,
रोटी पे मक्खन लगाये हुए,
बिटिया को दूध पिलाये हुए,
साथ मैं बिस्कुट खिलाये हुए,
......बहुत दिन बीते.......

बच्चों को दिलाने गये जो कपड़े,
महगाई ने हाथ दोनों ही पकड़े,
प्रेरणा को फ्राक दिलाये हुए,
पारस को अचकन सिलाये हुए,
नंगे पैरों को जूते पहनाये हुए,
......बहुत दिन बीते.......

दोस्तों को हमसे शिकायत ये आम है,
मिलते नही प्यारे क्या इतना काम है,
दोस्तों को घर पर बुलाये हुए,
दोस्तों के घर खुद भी जाये हुए,
मिल जुल के पार्टी मनाये हुए,
......बहुत दिन बीते.......

त्योहारों की रंगत अब हो गई फीकी,
महगाई से हमने बात ये है सीखी,
ईद की सिवैयां खाए हुए,
दिवाली की मिठाई भिजवाये हुए,
किरिश्मश पे गिफ्ट दिलाये हुए,
.....बहुत दिन बीते.......

मैं जब तक नेताओं की बात नही कर लेता मेरे पेट का दर्द ठीक नही होता है ( ऐसा नही की सारे नेता ही खराब हैं मगर बहुतायत तो भ्रष्ट व अपराधिक टाइप के नेताओं का ही है ) सो उन भ्रष्ट नेताओं के लिए कुछ पंक्तियाँ..........

हम करते हैं जब भी दिखावा ही करते,
देश की हालत से फर्क हमको नही पड़ते,
गणतन्त्र दिल से मनाये हुए,
राष्ट्र गान वास्तव मैं गाये हुए,
सचमुच दिल से तिरंगा फहराए हुए,
......बहुत दिन बीते.......

जय हिंद दोस्तों

गुरुवार, 5 अगस्त 2010

***देखि तेरी बाजीगरी सरकार***






वन्दे मातरम दोस्तों,
""बस एक ही उल्लू काफी है, बर्बाद गुलिस्ताँ करने को,
हर शाख पे उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिस्ताँ क्या होगा,;;
कामन वैल्थ मैं पानी की तरह बहाया जाने वाला पैसा जो कुछ थोडा बहुत काम मैं लगेगा और अधिकांश ऊपर से लेकर नीचे तक अफसर नेता ठेकेदार के नापाक गठजोड़ से इस तिकड़ी की जेब मै जा रहा है, कामन वैल्थ के बाद कामन मैं की जेब से टेक्स के रूप मैं लिया ही जाना है इन देश के ठेकेदारों को कहाँ इस बात की चिंता है की बाड़ से करोड़ों रूपये का गेंहू नही सड़ा है बल्कि यह गेंहू जमा खोर अफसर नापाक गठजोड़ के चलते जान बूझ कर सड़ाया गया है जिससे जमाखोर मन माने रेट पर गेंहू को बेच सके. अब इस कामन वैल्थ के नाम पर दोनों हाथ से देश का धन इस तिर्मूरती द्वारा लूटा जा रहा है, मीडिया मैं खबर आने के बाद ये थोडा सा हंगामे का दिखावा तो सरकारी मशीनरी को करना ही था, मगर वास्तव मैं जिम्मेदार लोगों पर कोई कार्यवाही होनी ही नही है क्योंकि इस हमाम में सारे ही नंगे हैं, कौन किसके बारे मैं बोलेगा, कुछ दिन का दिखावा कमिशन या आयोग बनेगा और जाँच करेगा जाँच की दिशा पहले से ही तय सुदा किसी एक अफसर पर आकर रूक जाएगी उस एक अफसर को बली का बकरा बनाकर सरकार भी वाह वाही लूटेगी उसके बाद विपछ का हंगामा भी खत्म और इस देश की जनता वह तो बेहद ही भुल्लकड़ है कुछ दिन बाद उसे ही क्या याद रहना है, सो लूटने वाले भी मस्त और लुटने वाली गरीब जनता की तो नियति ही लूटना है.
***देखि तेरी बाजीगरी सरकार***
लूटती है तू नाना प्रकार,
***देखि तेरी बाजीगरी सरकार***
कीमत से ज्यादा किराया तू देती,
दोनों हाथो से दलाली तू लेती,
सब से निराला है तेरा व्यापार
***देखि तेरी बाजीगरी सरकार***

शनिवार, 31 जुलाई 2010

***अजब तेरी कारीगरी रे करतार, अजब तू खेल रचता है,***


वन्दे मातरम दोस्तों,
***अजब तेरी कारीगरी रे करतार, अजब तू खेल रचता है,
कोई फाकों पे जिन्दा है, कोई खा खा के मरता है,***
किसी के तन पे है मलमल, किसी का तन बदन नंगा,
किसी की अर्थी है डोली, कोई बे- कफन मरता है,
***अजब तेरी कारीगरी रे करतार, अजब तू खेल रचता है,***
किसी के महल अटटारे, गगन से करते हैं बातें,
कोई कमबख्त देखो रे, दो गज जमी को तरसता है,
***अजब तेरी कारीगरी रे करतार, अजब तू खेल रचता है,***
कोई सोने के चम्मच से, चाँदी के बर्तन मैं है खाता,
कोई कर कर के मर जाता, नही पर पेट भरता है,
***अजब तेरी कारीगरी रे करतार, अजब तू खेल रचता है,***
किसी को तलाश खुशियों की, यंहां हर वक्त रहती है,
किसी के अंगने मै देखो, ख़ुशी का सावन बरसता है,
***अजब तेरी कारीगरी रे करतार, अजब तू खेल रचता है,
किसी की आँख में देखो, कभी आंसू ना आते हैं,
किसी को हंसने का देखो, महज एक ख्वाव दीखता है,
***अजब तेरी कारीगरी रे करतार, अजब तू खेल रचता है,
कोई फाकों पे जिन्दा है, कोई खा खा के मरता है,***

गुरुवार, 29 जुलाई 2010

आज पत्रकारिता एक व्यापार बनकर रह गई है.



वन्दे मातरम दोस्तों,
आज पत्रकारिता, व्यापार बनकर रह गई,
अच्छी बुरी हर खबर, बाजार बन कर रह गई,
अपने नफा नुकसान का, करते सदा ये आंकलन,
हर गरीब खबर एक, बेगार बन कर रह गई,
इस हाई प्रोफाइल दौर मैं, खबरें भी यारों बट गई,
इक जमी मैं दब गई, एक मीनार बन कर रह गई,
एक खबर बेकार सी, सारा जमाना जान गया,
एक गरीब लाश भी, बेकार बन कर रह गई,
पूरे दिन दिखा लोगों को, हिरोइन का नया फैशन,
एक बेवा की चीख पुकार, बीमार बन कर रह गई,

आज पत्रकारिता एक व्यापार बनकर रह गई है. सब खबरें इन चैनल मालिकों की मर्जी से ही चलती हैं, मैं एक एन जी ओ चलाता हूँ, पुलिस, पब्लिक, पत्रकारों मुजरिमों और राजनेताओं से लगातार ही पाला पढ़ता रहता है, यमुना पार ( देहली ) से सम्बन्धित अधिकतर पत्रकारों से मेरे अच्छे सम्बन्ध है, बहुत सी खबरें हमारे द्वारा ही उन तक पहुंचती हैं, बहुत सी खबरों की सत्यता के लिए ये खुद हमे घटना वाली जगह तक भेजते हैं, बहुत सी खबरें ऐसी होती हैं जो सामाजिक नजरिये से पब्लिक के सामने आनी ही चाहिए मगर न्यूज़ डेस्क पर बैठे लोग इन खबरों का स्तर जानने के बाद ही निर्णय लेते हैं की ये खबर आनी चाहिए या नही,
उदाहरन के लिए मैं बताना चाहूंगा की न्यू उस्मान पुर ( देहली ) थाना अंतर्गत एक माह मैं लग भग 7 लाशें सामने आई उन सभी के बारे मैं मैंने खुद पुलिस उपायुक्त सहित तमाम मीडिया कर्मियों को इनके बारे मैं बताया, बद किस्मती से इन लाशों मैं से अधिकतर नशेड़ियों की या लावारिश थी पुलिस ने इन लाशों का पोस्ट मार्टम कराकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली मीडिया कर्मियों को इन के मरने मैं कोई खबर ही नजर नही आई लिहाजा ये सभी मौतें गुमनामी मैं खोकर रह गई,

और एक उदाहरण बताता हूँ न्यू उस्मान पुर ( देहली ) थाना अंतर्गत ही देह व्यापर व नशे का कारोबार जोर शोर से चल रहा था हमारी एन जी ओ ने इस सबको बंद करने का प्रण किया इसके लिए हमने पुलिस और मीडिया दोनों से ही मदद मांगी मगर मीडिया को इसमें कंही कोई हाई प्रोफाइल मामला नजर नही आया पुलिस ने भी शुरू मैं तो हमारी बात पर कोई कार्यवाही करने की जहमत ही नही उठाई मगर अमित कसाना ( पत्रकार दैनिक जागरण ) द्वारा 18 जुलाई 2009 के अंक मैं इस खबर को प्रकाशित करके पुलिस महकमे मैं खलबली मचा दी और उसके बाद हमारे एरिये मैं चल रहे सभी गैर कानूनी धंधे पुलिस ने चुस्ती दिखाते हुए बंद करवा दिए, ये है वास्तव मैं मीडिया की ताकत, अब मैं पत्रकारों की मजबूरी की बात करता हूँ बहुत से मीडिया कर्मियों से मेरे दोस्ताना सम्बन्ध है मैं जब उनसे इस बात की शिकायत करता हूँ की आप हमारा सहयोग नही करते, बहुत सी खबरें जो बेहद महत्व पूर्ण हैं आप की जानकारी मैं आने के बाद भी जनता के सामने नही आ पाती हैं तो वो बताते हैं की यार हमारे हाथ मैं कुछ नही है हम खबर बना कर दे देते हैं उस खबर को चलाना या प्रकाशित करवाना हमारे हाथ मैं नही होता है, ऊपर बैठे लोगों को खबरों की जरूरत नही होती है उन्हें तो केवल हाई प्रोफाइल और सनसनी खेज खबरों की जरूरत होती है, और बहुत सी खबरों को पुलिस के आला अधिकारी ही नही चाहते हैं की वो खबरें जनता के बीच मैं पहुंचे.
दोस्त कभी पत्रकारिता मैं एक जज्बे की जूनून की जरूरत होती थी मगर अब पत्रकारिता के लिए सनसनी खेज होना जरूरी हो गया है चैनल्स टी आर प़ी के लिए हर खबर को सबसे पहले, सबसे तेज सनसनी खेज बना कर पेश करते हैं खबर का हाई प्रोफाइल होना पहली शर्त है कोई आम आदमी को इन्साफ दिलाने के लिए आगे नही आता गरीब की हत्या भी खबर नही होती और अमीर की कार भी ड़ीवाइडर से टकरा जाये तो मुख्या खबर बन जाती है यमुनापार जैसी गंदी बस्तियों मैं होने वाला बलात्कार भी खबर नही होती और लाजपत नगर या साऊथ एक्स मैं होने वाली छेड खानी भी चैनल्स पर पूरे दिन दिखाई जाती है, यमुनापार की बस्तियों मैं होने वाली लाखों की लूट पर भी चैनल्स की आँख नही खुलती और पाश कालोनी मैं किसी महिला का यदि पर्श भी चोरी हो जाये तो नमक मिर्च लगाकर उसे दिखाया जाता है आम आदमी का अपहरण कोई मायने नही रखता मगर किसी बड़े आदमी का कुत्ता भी खो जाये तो पूरे शहर के मीडिया कर्मी और पुलिस कर्मी पगलाए से उस कुत्ते के पीछे पड़ जाते हैं, सच जानिये मीडिया आज अपनी सही पहचान खोता जा रहा है आज मीडिया की पहचान एक व्यवसाय की हो कर रह गई है, आज मीडिया सच को सामने लाने का साधन ना रह कर अपने नफे नुकसान का आकलन करके कार्य करने वाला व्यापारी बन कर रह गई है. मीडिया आज यह भूल चुका है की वह सम्पूर्ण निजाम बदलने की ताकत रखता है

मंगलवार, 27 जुलाई 2010


वन्दे मातरम दोस्तों,

***सत्ता के मद में मदमस्त रहते हैं सत्ताधारी,
उन्हें कहाँ कब चिंता है जनता मरती बेचारी,**********

सुरसा के मुहं की तरह महगाई बडती जाती है
कितना भी कमाइए तनख्वाह कम पडती जाती है,
बच्चों का पेट भर जाये माँ खुद भूखी रह जाती है,
महगाई की मार फिर भी बच्चों का पेट ना भर पाती है,
ए. सी. कमरों में बैठ वो करते बजट की तैयारी,
क्यों कर वो समझ पाएंगे भूके, नंगों की लाचारी,
सत्ता के मद में मदमस्त रहते हैं सत्ताधारी,
उन्हें कहाँ कब चिंता है जनता मरती बेचारी,**********

गरीब के पिचके गाल अमीर खा खा कर के लाल हुआ,
अमीर हुआ नित नित अमीर गरीब और कंगाल हुआ,
जिसके दर्द हुआ ना कभी वो क्या समझेगा बीमारी,
जनता का दर्द कहाँ समझेगे जिन्हें नही जनता प्यारी,
सत्ता के मद में मदमस्त रहते हैं सत्ताधारी,
उन्हें कहाँ कब चिंता है जनता मरती बेचारी,**********

संघर्ष एन जी ओ: ***कंक्रीट का विशाल जंगल, बन गया ये शहर सारा***

संघर्ष एन जी ओ: ***कंक्रीट का विशाल जंगल, बन गया ये शहर सारा***

बुधवार, 21 जुलाई 2010

***कंक्रीट का विशाल जंगल, बन गया ये शहर सारा***




वन्दे मातरम दोस्तों,
गाँव जहाँ मिटटी की सोंधी खुशबू, तन मन को महका देती थी,
गाँव जहाँ होली के रंगो मैं, तन मन रंग जाता था,
गाँव जहाँ ईद और दिवाली, हम सब साथ मनाते थे,
गाँव जहाँ इक छोटा बच्चा, बडो बडो को जानता था,
गाँव जहाँ की फाग मुझे, याद अभी तक आती है,
गाँव जहाँ एक की ख़ुशी, सारे गाँव को नचाती थी,
गाँव जहाँ एक की शादी मैं, पूरा गाँव बराती था,
गाँव जहाँ एक का दुःख पूरे गाँव का दुःख होता था,
गाँव जहाँ के दूध दही की, बात निराली थी,
गाँव जहाँ की सारी गलियाँ, देखि भली थी,
गाँव जहाँ प़िरक्रति के, अनमोल नजारे चारों और,
कुये का शीतल जल, ठंडी हवा, मन्दिर का घंटा होती भोर,
आज हम सुख की खातिर, एक अंधी दौड़ को दौड़ रहे हैं,
ईद दीवाली की ख़ुशी, होली के रंग छोड़ रहे हैं,
त्यौहार हमारे कब आये, कब चले गये मालूम नही,
किसकी ख़ुशी और किसका गम, अपने से हमे फुर्सत है कहाँ,
कहाँ बीबी जाती कहाँ पे शौहर, इनको है मालूम कहाँ,
कौन हमारा हम किसके पडौसी, ये बात लगे बेमानी सी,
दुसरे की ख़ुशी या दुसरे का गम बात बड़ी अनजानी सी,
ढूध जहर सब्जी मैं जहर, पानी मैं भी जहर मिला,
सांसे भी जहरीली हो गई, जहरीला जंगल हमको मिला,
हर इन्सान यहाँ हुआ स्वार्थी, स्वार्थ खातिर जिन्दा है,
पति से पत्नी, पत्नी से पति, कर बेवफाई तनिक नही शर्मिंदा हैं
कंक्रीट का विशाल जंगल, बन गया ये शहर सारा,
पत्थर और दीवारों से, बना हुआ है घर हमारा,
प्रेम, प्यार और भाई चारा, इन दीवारों मैं दफन हुआ,
कंक्रीट का विशाल जंगल, अब तो सारा वतन हुआ,***

शनिवार, 3 जुलाई 2010

मन सोच सोच घबरा जाता, क्या यही हमारी थाती है?



***मन सोच सोच घबरा जाता, क्या यही हमारी थाती है?
बाग उजाड़ता खुद माली, बाड़ खेत को खाती है.
***हर घर मैं इक रावण बैठा, करने सीता हरण यहाँ,
लूट पाट करते देखे हैं, दानवीर ये कर्ण यहाँ,
मेहनत कश भूखे बैठे हैं, कर ना पाते भरण यहाँ,
जीना बेहद ही मुश्किल है, सस्ता बेहद मरण यहाँ,
सीता कहकर रावण से, खुद अपना हरण कराती है
***मन सोच सोच घबरा जाता, क्या यही हमारी थाती है?
बाग उजाड़ता खुद माली, बाड़ खेत को खाती है.
***आज दिए से देखो खुद, घर अपना जलने लगता है,
मजबूरी वश बाप ही खुद, बच्चों को छलने लगता,
पेट पलने की खातिर, कोई पेट मैं पलने लगता है,
देख जहाँ की हालत को, मन तिल-तिल गलने लगता है,
बच्चों की भूख मिटने माँ, खुद का सौदा कर जाती है,
***मन सोच सोच घबरा जाता, क्या यही हमारी थाती है?
बाग उजाड़ता खुद माली, बाड़ खेत को खाती है.

मंगलवार, 29 जून 2010

***ना जाने क्या ढूंढते हम अहिंसा में गाँधी में***


वन्दे मातरम दोस्तों,
फिर सत्ताईश मारे गये आतंक की आंधी में,
ना जाने क्या ढूंढते हम अहिंसा में गाँधी में.
बहुत समय नही गुजरा है दंतेवाड़ा के नक्सली नर संहार को, मगर हमारी सरकार ने इससे कोई सबक नही लिया, इन नक्सलियों की समस्या से निपटने के लिए कोई कारगर उपाय नही किये गये, हमारा ख़ुफ़िया तन्त्र एक बार फिर विफल रहा और इसका अंजाम एक बार फिर सत्ताईश जवानो की मौत के रूप में सामने आया,
सरकार क्यों आखिर इन नक्सलियों के आगे घुटने टेकने को मजबूर है? क्यों नही हम इन्हें नेस्तानाबूद नही कर पा रहे हैं? क्यों हमारा खुफिया तन्त्र इनके आगे फेल हो रहा है?
इन नक्सलियों की मदद उस जगह रहने वाले लोग आखिर क्यों करते है? क्या उन्हें सरकार में भरोसा नही है? क्या ग्राम वासी नक्सलियों को सरकार से अधिक ताकतवर समझते है? क्या नक्सलियों का डॉ ग्राम वासियों के दिमाग में इस प्रकार बैठ गया है की वो चाह कर भी इन नक्सलियों की खिलाफत नही कर सकते है? या फिर सरकार ही वोट बेंक की राजनीती के चलते इन्हें खत्म करना ही नही चाहती है?
सरकारों को इस बारे में सोचना ही होगा की हमारे वीर जवान आखिर कब तक इस प्रकार सरकारी मंसा के चलते शहीद होते रहेंगे? आखिर कब जागेगी सरकार?
(यहाँ अहिंसा और गाँधी से मेरा तात्पर्य महात्मा गाँधी की उन नीतियों से है जो पूर्णतया अहिंसा में विश्वास रखती हैं, हम अहिंसा अहिंसा चिल्लाते रहते हैं और वो वार पर करते रहते हैं, किसी की भावनाओं को ठेस पहुचाने का मेरा कोई इरादा नही है, अगर किसी को भी मेरे इन वाक्यों से ठेस लगती है तो मैं माफ़ी चाहता हूँ.)

सोमवार, 28 जून 2010



वन्दे मातरम दोस्तों,
***मेरा भारत महान,
जनता भूखी परेशान,
नेता भ्रष्ट बे इमान,
फिर भी मेरा भारत महान****
युवा फिरता बेरोजगार,
चौ तरफा महगाई मार,
आतंकी करते वार पे वार,
माफ़ उन्हें हम करते यार,
जीवन बना शमसान,
फिर भी मेरा भारत है महान,****
चौ तरफा रिशवत का जोर,
हम नैतिकता का करते शोर,
देश हमारा चला किस ओर,
कोई ना इसपे करता गौर,
भ्रष्ट का हम करते गुणगान,
फिर मेरा भारत है महान*****
जय हिंद

शुक्रवार, 25 जून 2010

***जय कुर्सी देवा***



वन्दे मातरम दोस्तों,
अभी कुछ घंटे पहले ही सरकार की और से गरीबों को समाप्त करने की दिशा में एक और मजबूत कदम उठाया गया है. अब रसोई में गैस सिलेंडर ३५ रूपये और महंगा आएगा, डीजल केवल दो रूपये लीटर महंगा होगा और केरोसीन तेल बस तीन रूपये लीटर ही महंगा हुआ है. सरकार का कहना है की जितना तेल कम्पनियों को घाटा है उस हिसाब से तो ये बडोतरी कुछ भी नहीं है,
गरीबी समाप्त करने की दिशा में ये एक बड़िया सरकारी पहल है, गरीब को खाने के लाले तो पहले ही से थे कुपोषण के शिकार गरीब बच्चो की तादाद पहले ही देश में गिने जाने लायक नही है आंकड़ों में ये तादाद अगर बड़ भी जाये तो क्या? भुखमरी का शिकार होकर कुछ और लोग अगर मर भी जाएँ तो क्या? कम से कम सरकारी आंकड़ों में गरीबों की तादाद तो कम दिखाई देगी और सरकार के ***गरीब हटाओ*** नारे को और अधिक मजबूती मिलेगी.
सरकार में शामिल कुछ सियासी दल इस पर विरोध भी दर्ज करायेंगे, सरकार भी अपनी मजबूरी का वास्ता देगी और कुर्सी का लालच इन सभी को बाँधे रखेगा, विपच्छ भी अगले चुनाव को ध्यान में रख कर कुछ ना कुछ शोर शराबा जरूर करेंगे क्योंकि ये दिखाबा करना भी कुर्सी तक पहुचने का एक जरिया एक मात्र तरीका है और सत्ता की होड़ में बने रहने के लिए इन सब की मजबूरी भी है. कोई भी नेता या पार्टी कोई सार्थक पहल नही करेगा.
जनता जाये भाड़ में, सत्ता हमको प्यारी है,
कल मरती हो आज मरे, कौन रिश्तेदार हमारी है,
***जय कुर्सी देवा***

मंगलवार, 22 जून 2010


दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि अधिकांश सरकारी विभागों में भ्रष्ट अधिकारी हैं जो गरीब लोगों के लिए निर्धारित धन हड़प रहे हैं। हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे लोगों की जगह जेल होनी चाहिए। न्यायमूर्ति शिव नारायण ढींगरा ने कहा, डीडीए, पुलिस या फिर एमसीडी हो, यहां काम करने वाला 90 प्रतिशत स्टाफ भ्रष्ट है। भारत जिस क्षेत्र में अग्रणी है वह भ्रष्टाचार है। अदालत ने यह टिप्पणी एक राष्ट्रीयकृत बैंक के वरिष्ठ अधिकारी गोपाल कृष्ण की जमानत याचिका ठुकराते हुए की। कृष्ण इस समय भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में हैं। एक बालिका की शिकायत पर सीबीआई ने बैंक अधिकारी को गिरफ्तार किया था। बालिका ने प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत दो लाख रुपये के ऋण के लिए आवेदन किया था जिसके एवज में उससे 20000 रुपये मांगे गए। जमानत याचिका ठुकराते हुए न्यायमूर्ति ने कहा, गरीबों की मदद के लिए कई सरकारी योजननाओं का लाभ उचित व्यक्ति को नहीं मिल पाता क्योंकि योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों में भ्रष्टाचार व्याप्त है। इस मामले का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि इसमें बैंक का उप प्रबंधक लिप्त है। अदालत ने कहा, सरकार द्वारा प्रधानमंत्री रोजगार योजना ऐसे वर्ग के लिए चलाई जा रही है जो निचले तबके के लोग हैं और धन के अभाव में कोई काम नहीं शुरू कर पाते हैं। कोर्ट ने इस पर बल दिया कि इसकी जांच होनी चाहिए कि ये योजनाएं जमीनी स्तर पर सही ढंग से लोगों को लाभ पहुंचा पा रही हैं या नहीं?

बुधवार, 9 जून 2010

***बेहद कमजोर है हमारी कानून व्यवस्था और बेहद मजबूर हैं हमारे न्यायाधीश***


****भोपाल गैस कांड पर आखिर फैसला आ ही गया, सातों आरोपियों को अदालत ने आखिर सजा सुना ही दी, वाह रे भारतीय कानून 25000 लोग काल के गाल समा गए, लाखो गूंगे, अंधे, बहरे और अपाहिज हो गए, वाह रे भारतीय कानून का खोखला पन आरोपियों को दो वर्ष की सजा ओर मुख्य आरोपी एडरसन को तो आज तक हम पकड़ ही नहीं सके, दो वर्ष की सजा वह भी होग...ी या नहीं कुछ पता नहीं, अभी ये अपराधी अपील करेंगे अपर कोर्ट में जायेंगे ओर सुप्रीम कोर्ट तक जाते जाते हजारो पीड़ित न्याय की आस लिए काल के गाल में समां जायेंगे, कुछ अपराधी भी शायद तब तक इस दुनिया में न रहे, मगर हमारे कानून की देवी की आख पर पट्टी बंधी है अंधी है, हमारे कानून की देवी वह यह जानते हुए भी की सामने एक जघन्य अपराधी खड़ा है, सजा नहीं दे सकती क्यों की वह केवल वह देखती है जो उसे दिखाया जाता है, और शातिर लोग इसका अपनी इच्छा अनुसार फाएदा उठाते रहते है, मजबूर लाचार गरीब व्यक्ति केवल तारीख ओर तारीखों के चक्कर में केवल अदालत के चक्कर में उलझ कर अपनी इह लीला समाप्त कर बैठता है, मगर उसे न्याय नहीं मिलता वाह रे हमारी न्याय पालिका***

बुधवार, 28 अप्रैल 2010

उसने तो बनाया था इंसान ही हमे


वन्दे मातरम दोस्तों,

***भगवान बनने के रखी तमन्ना,
हम बन ना सके इन्सान कभी,...
***दुसरे के सुख से सदा दुखी रहे,
किया खुद के सुख का न सम्मान कभी,...

उस उपर वाले ने संसार बनाते समय किसी के लिए कोई भेदभाव नही किया मगर हमने भेद भाव की सेकड़ों दीवारें खड़ी कर दी इसी पर कुछ लिखने की एक छोटी सी कोशिश है.

उसने तो बनाया था इंसान ही हमे,
हमने ही उसे हिन्दू, मुसलमान बनाया..............
उसने तो बख्सी थी जमी एक ही हमको,
हमने ही उसपे हिंद, चीन, पाकिस्तान बसाया...........
उसने तो दी थी फक्त तालीम प्यार की,
हमने ही नफरतो से दुनिया को श्मसान बनाया.......
उसने तो बनाया था संसार स्वर्ग सा,
हमने बेमतलब जहाँ को कब्रिस्तान बनाया.........

जग तभी सुधारेंगे खुद पहले हम जब सुधरेंगे.

वन्दे मातरम दोस्तों,
देश से हमको प्यार घनेरा,
देश हुआ पर पंगु मेरा,
राजनेता लिपटे हैं घुन से,
भ्रष्टाचारी चिपटे हैं घुन से,
सफेद पोश कुछ राह जन हैं,
दूधिया जिनका पैरहन है,
गद्दी जिनको प्यारी बहुत,
करते गद्दी से गद्दारी बहुत,
भेडिये कुछ आ छिपे हैं खाकी मैं,
सबके है सामने क्या बोलूँ अब बाकी मैं,
दीमक की तरह वर्दी को खाते हैं,
मजबूर जनता को झूठा रौब दिखाते है,
नोटों के चक्कर में लगी है नौकरशाही,
बिना करे कुछ भी चाहते हैं वह वही,
नौकरी बचाने को तलवा चाटू हो गये हैं,
ईमानदार नौकरशाह भीड़ मै कहीं खो गये हैं,
मेरे देश के नौ जवानों हम मै बाकि है जान अभी,
सोने की चिड़िया है भारत ये लौटानी है शान अभी,
जब हम सारे मिल जायेंगे,
सब कुछ ही कर गुजरेंगे,
पर याद हमे ये रखना होगा,
जग तभी सुधारेंगे खुद पहले हम जब सुधरेंगे.

अप्रत्याशित नहीं था नक्सलियों का हमला


छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में 76 सुरक्षाकर्मियों की मौत देश के नक्सली हमले के इतिहास में सबसे बड़ा हमला माना जा रहा है। वहीं नक्सली मामलों के जानकारों की माने तो यह हमला अप्रत्याशित नहीं है, क्योंकि नक्सल विरोधी अभियान के शुरू होने के बाद से नक्सली इस क्षेत्र में बड़ी घटना को अंजाम देकर केंद्र और राज्य सरकार को अपनी मजबूत स्थिति का अहसास कराने की फिराक में थे।

छत्तीसगढ़ के वन्य क्षेत्रों में करीब तीन दशक पहले शुरू हुआ नक्सलियों का आंदोलन आज इस राज्य के लिए नासूर बन गया है। नक्सलियों के लगातार बढ़ते हमले और इसमें मरने वाले पुलिस जवानों और आम आदमी की संख्या से राज्य में नक्सल समस्या का अंदाजा लगाया जा सकता है।

राज्य में पिछले लगभग पांच सालों में नक्सलियों ने जमकर उत्पात मचाया है और इस समस्या के कारण लगभग 15 सौ पुलिस कर्मियों, विशेष पुलिस अधिकारियों और आम नागरिकों की मृत्यु हुई है। मंगलवार को दंतेवाड़ा जिले में हुए इस नक्सली हमले ने इस समस्या का ऐसा वीभत्स रूप प्रस्तुत किया है जिससे निपटने के लिए अब सरकारों को नए सिरे से विचार करना होगा।

राज्य के नक्सल मामलों के जानकारों के मुताबिक मंगलवार को हुई घटना को देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि नक्सली ऐसी घटना को अंजाम देने के फिराक में थे और वे पहले से इसकी तैयारी में थे। यह माना जा रहा है कि नक्सलियों ने इस हमले के लिए अपने प्रशिक्षित लोगों का उपयोग किया था क्योंकि इतनी बड़ी घटना को अंजाम देना नक्सलियों के छोटे दल के बस की बात नहीं है। जानकारों का यह भी कहना है कि यह अक्सर देखने में आया है कि नक्सली जब भी वार्ता के लिए आगे कदम बढ़ाते हैं और युध्द विराम की बात कहते हैं तब वे इस दौरान अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश करते हैं।

पिछले कुछ समय से नक्सलियों की तरफ से बातचीत और युध्द विराम की पेशकश और बाद में इससे पीछे हटने की घटना के बाद यह आशंका जताई जा रही थी कि नक्सली अब हमले तेज करेंगे और यह आशंका उस समय सच साबित हुई जब उन्होंने तीन दिन पहले उड़ीसा में पुलिस दल पर हमला कर 10 पुलिसकर्मियों को मार डाला।

वहीं कल दंतेवाड़ा जिले में नक्सलियों ने हमेशा की तरह अभियान में निकले उन जवानों पर हमला किया जो जंगली, पथरीले और उतार चढ़ाव वाले रास्तों से वापस आ रहे थे। नक्सलियों को इस बात की जानकारी थी कि लंबा सफर तय करने वाले सिपाही वापसी के दौरान थके हुए रहते हैं और ऐसे में उन्हें निशाना बनाना ज्यादा आसान होता है और वही हुआ। नक्सलियों के इस सुनियोजित हमले में सुरक्षा बल के जवान फंस गए और 76 सुरक्षा कर्मी मारे गए।

लगातार नक्सली हमले और भारी संख्या में सुरक्षाबल के जवानों के शहीद होने के बाद छत्तीसगढ़ राज्य शासन को यह जरूर महसूस हो रहा है कि अब नक्सलियों के साथ लड़ाई में रणनीति बदलने की जरूरत है।

राज्य के गृहमंत्री ननकी राम कंवर कहते हैं कि यह वक्त हालांकि गलती निकालने का नहीं है, लेकिन इतना तो तय है कि कहीं न कहीं इसमें चूक हुई है। कंवर कहते हैं कि राज्य में सुरक्षा बलों ने पिछले कुछ समय में ज्यादा कामयाबी हासिल की और कई नक्सलियों को गिरफ्तार करने और अनेकों को मार गिराने में सफलता पाई। इस शुरूआती सफलता से राज्य के नक्सल प्रभावित बस्तर और दंतेवाड़ा जिले के नागरिकों को लगने लगा था कि क्षेत्र में जल्द शांति स्थापित होगी लेकिन यह भी सही है कि नक्सलियों के साथ लड़ाई छोटी नहीं है और सुरक्षा बल को इस लड़ाई को उतनी ही सजगता के साथ लड़ना होगा।

गृहमंत्री कहते हैं कि मंगलवार की घटना की जब पूरी जानकारी आएगी और इसकी समीक्षा होगी तो जरूरत होने पर निश्चित तौर पर रणनीति को भी बदलने पर विचार किया जा सकता है।

वे कहते हैं कि नक्सली आज पूरे देश में अपने पैर पसार रहे हैं और पूरा देश इन लोकतंत्र विरोधी लोगों से परेशान है। यह केवल सुरक्षा बल या राज्य की लड़ाई नहीं बल्कि उन सभी की लड़ाई है जो लोकतंत्र में विश्वास रखते हैं।

राज्य के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने इस घटना के बाद राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया और सरकार को बर्खास्त करने की मांग की।

राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता रविंद्र चौबे कहते हैं कि राज्य सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए केंद्र से जो भी मांग की वह पूरी हुई। राज्य को बल दिया गया तथा नए साजो सामान मुहैया कराए गए लेकिन इसके बावजूद एक हजार की संख्या में नक्सली किसी स्थान में हमला करने एकत्र होते हैं तो उसकी भनक खुफिया तंत्र को क्यों नहीं लग पाती।