संघर्ष

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शनिवार, 31 जुलाई 2010

***अजब तेरी कारीगरी रे करतार, अजब तू खेल रचता है,***


वन्दे मातरम दोस्तों,
***अजब तेरी कारीगरी रे करतार, अजब तू खेल रचता है,
कोई फाकों पे जिन्दा है, कोई खा खा के मरता है,***
किसी के तन पे है मलमल, किसी का तन बदन नंगा,
किसी की अर्थी है डोली, कोई बे- कफन मरता है,
***अजब तेरी कारीगरी रे करतार, अजब तू खेल रचता है,***
किसी के महल अटटारे, गगन से करते हैं बातें,
कोई कमबख्त देखो रे, दो गज जमी को तरसता है,
***अजब तेरी कारीगरी रे करतार, अजब तू खेल रचता है,***
कोई सोने के चम्मच से, चाँदी के बर्तन मैं है खाता,
कोई कर कर के मर जाता, नही पर पेट भरता है,
***अजब तेरी कारीगरी रे करतार, अजब तू खेल रचता है,***
किसी को तलाश खुशियों की, यंहां हर वक्त रहती है,
किसी के अंगने मै देखो, ख़ुशी का सावन बरसता है,
***अजब तेरी कारीगरी रे करतार, अजब तू खेल रचता है,
किसी की आँख में देखो, कभी आंसू ना आते हैं,
किसी को हंसने का देखो, महज एक ख्वाव दीखता है,
***अजब तेरी कारीगरी रे करतार, अजब तू खेल रचता है,
कोई फाकों पे जिन्दा है, कोई खा खा के मरता है,***

2 टिप्‍पणियां:

  1. किसी के महल अटटारे, गगन से करते हैं बातें,
    कोई कमबख्त देखो रे, दो गज जमी को तरसता है,

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  2. किसी के महल अटटारे, गगन से करते हैं बातें,
    कोई कमबख्त देखो रे, दो गज जमी को तरसता है,

    बहुत सुन्दर!!

    जवाब देंहटाएं