संघर्ष

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मंगलवार, 31 अगस्त 2010

 
 
 
 
Posted by Picasa

वन्दे मातरम दोस्तों,
गाल गर बजाने से, बात अगर बन जाती,
मेहनत कर दुनिया मैं, रोटी कमाता कौन,
बातों से खेतों मैं, फसल गर होती पैदा,
जेठ की दोपहरी मैं, हल फिर चलाता कौन,
बातें ही बनाने से, महल अगर बन जाते,
मिटटी मैं मिटटी हो, गारा बनाता कौन,
बातें ही बनाने से, बदन अगर ढक जाता,
कपड़ा बनाने को, चरखा चलाता कौन,
बातें ही बनाने से, नहरें अगर खुद जाती,
जलते रेगिस्तान मैं भी, हरियाली लाता कौन,
गाल ही बजाने से, युद्ध अगर जीते जाते,
सरहद पर जाकर के, लहू फिर बहाता कौन,
गाल ही बजाते रहते, गर हमारे अमर शहीद,
सोचो भारत माँ को, आजाद कराता कौन??

बुधवार, 11 अगस्त 2010

"""रूहे शहीदा शर्मिंदा हैं"""




वन्दे मातरम दोस्तों,

आजादी खुद पर शरमाई,
वक्त ने ली कैसी अंगडाई,
रूहे शहीदा शर्मिंदा हैं,
जिन्दगी किस दौर पे आई,

क्या इसीलिए हम फांसी चढ़ गये ,
क्या यही स्वप्न हमारा था,
तुम लूट लूट कर इसको खाओ,
जो हमे जान से प्यारा था,

तुम लालकिले फहराने तिरंगा,
सुरछा गार्डों के संग आते हो,
देश की खाक हिफाजत करोगे,
अपनी जान बचा नही पाते हो,

उग्रबाद के आगे टेकते घुटने,
तुम्हे जान आन से प्यारी है,
खुद को समझते देश से ऊपर,
इसलिए ही हार तुम्हारी है,

बेबस क्यों लाल भूमि के, शत्रु क्यों हो रहा दबंग???
क्योंकि देश पे मर मिटने की अब, नेताओं मैं नही उमंग,
लाल किले पर तिरंगा, फहराओ तुम शान से,
इतना प्यार मत करो, अपनी इस जान से,
अगर मौत भी आये तो, इक मिशाल बन जाओ तुम,
तुम भारत माँ के हो सपूत, धरा गगन पर छाओ तुम,
फिर कोई रूबिया प्रकरण, दौहराया ना जो जायेगा,
उग्रवाद इस देश से, तब ही तो मिटने पायेगा,
देश द्रोही को मारने मैं, मिनट ना एक बर्बाद करो,
आजादी की खातिरफांसी चढ़ गये, इतना तो तुम याद करो,


शहीदेआजम भगत सिंह ने कहा था -‘‘भारतीय मुक्ति संग्राम तब तक चलता रहेगा जब तक मुट्ठी भर शोषक लोग अपने फायदे के लिए आम जनता के श्रम का शोषण करते रहेंगे। शोषक चाहे ब्रिटिश हों या भारतीय।

सोमवार, 9 अगस्त 2010

......बहुत दिन बीते.......



वन्दे मातरम दोस्तों,

......बहुत दिन बीते.......

थाली मैं दाल को आये हुए,
पत्नी को हरी सब्जी बनाये हुए,
खाने मै सलाद को खाए हुए,
......बहुत दिन बीते.......

रोटी का साथ देखो मक्खन ने छोड़ा,
दूध की खातिर बिटिया का दिल तोडा,
रोटी पे मक्खन लगाये हुए,
बिटिया को दूध पिलाये हुए,
साथ मैं बिस्कुट खिलाये हुए,
......बहुत दिन बीते.......

बच्चों को दिलाने गये जो कपड़े,
महगाई ने हाथ दोनों ही पकड़े,
प्रेरणा को फ्राक दिलाये हुए,
पारस को अचकन सिलाये हुए,
नंगे पैरों को जूते पहनाये हुए,
......बहुत दिन बीते.......

दोस्तों को हमसे शिकायत ये आम है,
मिलते नही प्यारे क्या इतना काम है,
दोस्तों को घर पर बुलाये हुए,
दोस्तों के घर खुद भी जाये हुए,
मिल जुल के पार्टी मनाये हुए,
......बहुत दिन बीते.......

त्योहारों की रंगत अब हो गई फीकी,
महगाई से हमने बात ये है सीखी,
ईद की सिवैयां खाए हुए,
दिवाली की मिठाई भिजवाये हुए,
किरिश्मश पे गिफ्ट दिलाये हुए,
.....बहुत दिन बीते.......

मैं जब तक नेताओं की बात नही कर लेता मेरे पेट का दर्द ठीक नही होता है ( ऐसा नही की सारे नेता ही खराब हैं मगर बहुतायत तो भ्रष्ट व अपराधिक टाइप के नेताओं का ही है ) सो उन भ्रष्ट नेताओं के लिए कुछ पंक्तियाँ..........

हम करते हैं जब भी दिखावा ही करते,
देश की हालत से फर्क हमको नही पड़ते,
गणतन्त्र दिल से मनाये हुए,
राष्ट्र गान वास्तव मैं गाये हुए,
सचमुच दिल से तिरंगा फहराए हुए,
......बहुत दिन बीते.......

जय हिंद दोस्तों

गुरुवार, 5 अगस्त 2010

***देखि तेरी बाजीगरी सरकार***






वन्दे मातरम दोस्तों,
""बस एक ही उल्लू काफी है, बर्बाद गुलिस्ताँ करने को,
हर शाख पे उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिस्ताँ क्या होगा,;;
कामन वैल्थ मैं पानी की तरह बहाया जाने वाला पैसा जो कुछ थोडा बहुत काम मैं लगेगा और अधिकांश ऊपर से लेकर नीचे तक अफसर नेता ठेकेदार के नापाक गठजोड़ से इस तिकड़ी की जेब मै जा रहा है, कामन वैल्थ के बाद कामन मैं की जेब से टेक्स के रूप मैं लिया ही जाना है इन देश के ठेकेदारों को कहाँ इस बात की चिंता है की बाड़ से करोड़ों रूपये का गेंहू नही सड़ा है बल्कि यह गेंहू जमा खोर अफसर नापाक गठजोड़ के चलते जान बूझ कर सड़ाया गया है जिससे जमाखोर मन माने रेट पर गेंहू को बेच सके. अब इस कामन वैल्थ के नाम पर दोनों हाथ से देश का धन इस तिर्मूरती द्वारा लूटा जा रहा है, मीडिया मैं खबर आने के बाद ये थोडा सा हंगामे का दिखावा तो सरकारी मशीनरी को करना ही था, मगर वास्तव मैं जिम्मेदार लोगों पर कोई कार्यवाही होनी ही नही है क्योंकि इस हमाम में सारे ही नंगे हैं, कौन किसके बारे मैं बोलेगा, कुछ दिन का दिखावा कमिशन या आयोग बनेगा और जाँच करेगा जाँच की दिशा पहले से ही तय सुदा किसी एक अफसर पर आकर रूक जाएगी उस एक अफसर को बली का बकरा बनाकर सरकार भी वाह वाही लूटेगी उसके बाद विपछ का हंगामा भी खत्म और इस देश की जनता वह तो बेहद ही भुल्लकड़ है कुछ दिन बाद उसे ही क्या याद रहना है, सो लूटने वाले भी मस्त और लुटने वाली गरीब जनता की तो नियति ही लूटना है.
***देखि तेरी बाजीगरी सरकार***
लूटती है तू नाना प्रकार,
***देखि तेरी बाजीगरी सरकार***
कीमत से ज्यादा किराया तू देती,
दोनों हाथो से दलाली तू लेती,
सब से निराला है तेरा व्यापार
***देखि तेरी बाजीगरी सरकार***