संघर्ष

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बुधवार, 28 अप्रैल 2010

उसने तो बनाया था इंसान ही हमे


वन्दे मातरम दोस्तों,

***भगवान बनने के रखी तमन्ना,
हम बन ना सके इन्सान कभी,...
***दुसरे के सुख से सदा दुखी रहे,
किया खुद के सुख का न सम्मान कभी,...

उस उपर वाले ने संसार बनाते समय किसी के लिए कोई भेदभाव नही किया मगर हमने भेद भाव की सेकड़ों दीवारें खड़ी कर दी इसी पर कुछ लिखने की एक छोटी सी कोशिश है.

उसने तो बनाया था इंसान ही हमे,
हमने ही उसे हिन्दू, मुसलमान बनाया..............
उसने तो बख्सी थी जमी एक ही हमको,
हमने ही उसपे हिंद, चीन, पाकिस्तान बसाया...........
उसने तो दी थी फक्त तालीम प्यार की,
हमने ही नफरतो से दुनिया को श्मसान बनाया.......
उसने तो बनाया था संसार स्वर्ग सा,
हमने बेमतलब जहाँ को कब्रिस्तान बनाया.........

जग तभी सुधारेंगे खुद पहले हम जब सुधरेंगे.

वन्दे मातरम दोस्तों,
देश से हमको प्यार घनेरा,
देश हुआ पर पंगु मेरा,
राजनेता लिपटे हैं घुन से,
भ्रष्टाचारी चिपटे हैं घुन से,
सफेद पोश कुछ राह जन हैं,
दूधिया जिनका पैरहन है,
गद्दी जिनको प्यारी बहुत,
करते गद्दी से गद्दारी बहुत,
भेडिये कुछ आ छिपे हैं खाकी मैं,
सबके है सामने क्या बोलूँ अब बाकी मैं,
दीमक की तरह वर्दी को खाते हैं,
मजबूर जनता को झूठा रौब दिखाते है,
नोटों के चक्कर में लगी है नौकरशाही,
बिना करे कुछ भी चाहते हैं वह वही,
नौकरी बचाने को तलवा चाटू हो गये हैं,
ईमानदार नौकरशाह भीड़ मै कहीं खो गये हैं,
मेरे देश के नौ जवानों हम मै बाकि है जान अभी,
सोने की चिड़िया है भारत ये लौटानी है शान अभी,
जब हम सारे मिल जायेंगे,
सब कुछ ही कर गुजरेंगे,
पर याद हमे ये रखना होगा,
जग तभी सुधारेंगे खुद पहले हम जब सुधरेंगे.

अप्रत्याशित नहीं था नक्सलियों का हमला


छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में 76 सुरक्षाकर्मियों की मौत देश के नक्सली हमले के इतिहास में सबसे बड़ा हमला माना जा रहा है। वहीं नक्सली मामलों के जानकारों की माने तो यह हमला अप्रत्याशित नहीं है, क्योंकि नक्सल विरोधी अभियान के शुरू होने के बाद से नक्सली इस क्षेत्र में बड़ी घटना को अंजाम देकर केंद्र और राज्य सरकार को अपनी मजबूत स्थिति का अहसास कराने की फिराक में थे।

छत्तीसगढ़ के वन्य क्षेत्रों में करीब तीन दशक पहले शुरू हुआ नक्सलियों का आंदोलन आज इस राज्य के लिए नासूर बन गया है। नक्सलियों के लगातार बढ़ते हमले और इसमें मरने वाले पुलिस जवानों और आम आदमी की संख्या से राज्य में नक्सल समस्या का अंदाजा लगाया जा सकता है।

राज्य में पिछले लगभग पांच सालों में नक्सलियों ने जमकर उत्पात मचाया है और इस समस्या के कारण लगभग 15 सौ पुलिस कर्मियों, विशेष पुलिस अधिकारियों और आम नागरिकों की मृत्यु हुई है। मंगलवार को दंतेवाड़ा जिले में हुए इस नक्सली हमले ने इस समस्या का ऐसा वीभत्स रूप प्रस्तुत किया है जिससे निपटने के लिए अब सरकारों को नए सिरे से विचार करना होगा।

राज्य के नक्सल मामलों के जानकारों के मुताबिक मंगलवार को हुई घटना को देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि नक्सली ऐसी घटना को अंजाम देने के फिराक में थे और वे पहले से इसकी तैयारी में थे। यह माना जा रहा है कि नक्सलियों ने इस हमले के लिए अपने प्रशिक्षित लोगों का उपयोग किया था क्योंकि इतनी बड़ी घटना को अंजाम देना नक्सलियों के छोटे दल के बस की बात नहीं है। जानकारों का यह भी कहना है कि यह अक्सर देखने में आया है कि नक्सली जब भी वार्ता के लिए आगे कदम बढ़ाते हैं और युध्द विराम की बात कहते हैं तब वे इस दौरान अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश करते हैं।

पिछले कुछ समय से नक्सलियों की तरफ से बातचीत और युध्द विराम की पेशकश और बाद में इससे पीछे हटने की घटना के बाद यह आशंका जताई जा रही थी कि नक्सली अब हमले तेज करेंगे और यह आशंका उस समय सच साबित हुई जब उन्होंने तीन दिन पहले उड़ीसा में पुलिस दल पर हमला कर 10 पुलिसकर्मियों को मार डाला।

वहीं कल दंतेवाड़ा जिले में नक्सलियों ने हमेशा की तरह अभियान में निकले उन जवानों पर हमला किया जो जंगली, पथरीले और उतार चढ़ाव वाले रास्तों से वापस आ रहे थे। नक्सलियों को इस बात की जानकारी थी कि लंबा सफर तय करने वाले सिपाही वापसी के दौरान थके हुए रहते हैं और ऐसे में उन्हें निशाना बनाना ज्यादा आसान होता है और वही हुआ। नक्सलियों के इस सुनियोजित हमले में सुरक्षा बल के जवान फंस गए और 76 सुरक्षा कर्मी मारे गए।

लगातार नक्सली हमले और भारी संख्या में सुरक्षाबल के जवानों के शहीद होने के बाद छत्तीसगढ़ राज्य शासन को यह जरूर महसूस हो रहा है कि अब नक्सलियों के साथ लड़ाई में रणनीति बदलने की जरूरत है।

राज्य के गृहमंत्री ननकी राम कंवर कहते हैं कि यह वक्त हालांकि गलती निकालने का नहीं है, लेकिन इतना तो तय है कि कहीं न कहीं इसमें चूक हुई है। कंवर कहते हैं कि राज्य में सुरक्षा बलों ने पिछले कुछ समय में ज्यादा कामयाबी हासिल की और कई नक्सलियों को गिरफ्तार करने और अनेकों को मार गिराने में सफलता पाई। इस शुरूआती सफलता से राज्य के नक्सल प्रभावित बस्तर और दंतेवाड़ा जिले के नागरिकों को लगने लगा था कि क्षेत्र में जल्द शांति स्थापित होगी लेकिन यह भी सही है कि नक्सलियों के साथ लड़ाई छोटी नहीं है और सुरक्षा बल को इस लड़ाई को उतनी ही सजगता के साथ लड़ना होगा।

गृहमंत्री कहते हैं कि मंगलवार की घटना की जब पूरी जानकारी आएगी और इसकी समीक्षा होगी तो जरूरत होने पर निश्चित तौर पर रणनीति को भी बदलने पर विचार किया जा सकता है।

वे कहते हैं कि नक्सली आज पूरे देश में अपने पैर पसार रहे हैं और पूरा देश इन लोकतंत्र विरोधी लोगों से परेशान है। यह केवल सुरक्षा बल या राज्य की लड़ाई नहीं बल्कि उन सभी की लड़ाई है जो लोकतंत्र में विश्वास रखते हैं।

राज्य के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने इस घटना के बाद राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया और सरकार को बर्खास्त करने की मांग की।

राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता रविंद्र चौबे कहते हैं कि राज्य सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए केंद्र से जो भी मांग की वह पूरी हुई। राज्य को बल दिया गया तथा नए साजो सामान मुहैया कराए गए लेकिन इसके बावजूद एक हजार की संख्या में नक्सली किसी स्थान में हमला करने एकत्र होते हैं तो उसकी भनक खुफिया तंत्र को क्यों नहीं लग पाती।

आतंक वाद का उद्देश्य है क्या ?


वन्दे मातरम दोस्तों,
एक सवाल गूंजता है हरी भरी इन वादियों में,
एक सवाल मैं पूछता हूँ इन आतंक वादियों से,
आतंक वाद का देश क्या ? आतंक वाद का परिवेश है क्या ?
आतंक वाद की भाषा क्या ? आतंक वाद का भेष है क्या ?
आतंक वाद की शक्ल है क्या ? आतंक वाद का उद्देश्य है क्या ?
आतंक वाद की राह है क्या ? आतंक वाद का संदेश है क्या ?
आतंक वाद बस आतंक वाद है, जिसको खूँ रेज़ी प्यारी है
बे मकसद खून बहाने की, इनको लगी बीमारी है
आतंक वाद क्या हिन्दू है? क्या आतंक वाद है मुसलमान?
ताकत के मद में खून बहाना, आतंक वाद का है ईमान,
दौलत ही इनका मजहब, दौलत इनका धर्म ईमान,
दौलत की अंधी दौड़ दौड़ेते जाते, ये हैं कुछ पागल नौजवान,
आतंक वादियों को केवल, दौलत से है प्यार बहुत,
मानवता इनकी नजर में, बेमकसद बेकार बहुत,

बुधवार, 14 अप्रैल 2010

युद्ध "समझौता" युद्ध विराम


वन्दे मातरम दोस्तों,
***जिसे नही निज धर्म का निज देश का अभिमान है वो नर नही है निरा पशु है और मिरतक समान है,***
एक छोटा सा देश जो कभी हमारा ही एक भाग होता था धर्म के नाम पर हमसे अलग हुआ उसने अपना नाम रखा पाकिस्तान, पाक यानि पवित्र,यानि वो जगह जहाँ पवित्रता होनी चाहिए थी.
मगर हुआ उसका उल्टा ही वो देश अंदरूनी कलहो में उलझा रहा और उस और से अपनी अवाम का दिमाग हटाने के लिए उसने भारत पर एक युद्ध थोप दिया मगर हुआ क्या वो हरा, कुछ दोस्तों ने मिलकर इस युद्ध की खटास को दूर करने की कोशिश की दोनों देशों को शान्ति को शान्ति वार्ता के लिए तैयार कर लिया, शान्ति हुई भी मगर कितने दिन कुछ साल बाद फिर दोनों देश एक युद्ध में उलझेफिर वही अंजाम हुआ पाकिस्तान फिर परास्त हुआ हम फिर शान्ति वार्ता को तैयार हुए फिर वही शान्ति का राग अलापा गया फिर युद्ध विराम हुआ, (युद्ध "समझौता" युद्ध विराम) पहले युद्ध से लेकर कारगिल तक यही होता रहा, युद्ध होते रहे पाकिस्तान हारता रहा, मगर इस से ना पाकिस्तानी हुक्मरानों ने सबक लिया ना ही भारतीय कूट नीतिज्ञो ने, क्योंकि हर युद्ध का अंजाम चाहे कुछ भी हो, कोई भी पाकिस्तानी हुक्मरान या भारतीय कूट नीतिग्य इन युद्ध में नही मारा गया, दोनों ही देश के सर्वे सर्वा ये भूल गये कि एक युद्ध हमे सालो पीछे ले जाता है, हम प्रगति की रह से भटक जाते है, पाकिस्तान की क्या मजबूरी है जो वह युद्ध करता है वही जाने मगर हमला होने पर जबाब देना ही होगा ये सत्य है, मगर एक सत्य जो आज तक भारतीय जन मानस नही समझ पाया कि आखिर क्यों हम हर बार पाकिस्तान को माफ़ कर देते है? क्यों उन लोगो को जो भारतीय भूमि पर हमले के दोषी होते है, अफजल गुरू और कसाब जैसे लोगो को आखिर क्यों हम अदालतों के चक्कर लगवा कर समय बर्बाद करते है क्यों नही आखिर हम उन्हें फांसी पर लटका देते है? आखिर हम किस से डरते है क्या उस अमेरिका से जिसने 9/11 होने पर एक बड़ा युद्ध अंजाम दे डाला, जिसने कतई ये नही सोचा कि एक ओसामा बिन लादेन के लिए पूरे विश्व को युद्ध की भट्टी में नही झोंका जा सकता, उसने युद्ध किया बिना विश्व समुदाय की चिंता किये, और उस युद्ध का ही डर है कि अमेरिका मै फिर कोई 9/11 नही हुआ,
एक हम और हमारा भारत है आतंक वादी आते है, लाल किले पर हमला करते है, पकड़े जाने के बाबजूद जेलों में ऐसो आराम की जिन्दगी आज तक गुजार रहे होते है देहली, पूने, मालेगांव, गुजरात सहित पूरे भारत भर में बम ब्लास्ट होते है आतंकी फिर पकड़े जाते है फिर अदालतों के चक्कर में किसी को सजा नही होती और इसीका परिणाम है कि आतंकी मुम्बई में घुस कर २६/११ को अंजाम देते है, सरे सडक हेमंत करकरे, अशोक कामते जैसे अनगिनत जांबाज शहीद होते है, वो आतंकी हमारे सामने ही अंधाधुन्द फायरिंग कर रहे होते है, और हम उन्हें गोली नही मारते जिन्दा पकड़ना चाहते है, क्यों? क्या इसलिए की हम साबित कर सके की इसके पीछे पाकिस्तानी हाथ है? अरे आखिर क्या होगा ये साबित करके भी जब हमारे अंदर इनको खत्म करने की इच्छा शक्ति ही नही है? पूरा देश इस बात को जनता है, विश्व समुदाय ने इस हमले का लाइव टेलीकास्ट देखा, सब जानते है कि कसाब पाकिस्तानी है मगर पाकिस्तान कसाब को पाकिस्तानी नागरिक मानने से ही इंकार करता है अब हम क्या करेंगे?
भारतीय कूट नीतिज्ञो को अब ज्यादा विश्व जनमत की इस बारे में परवाह करना छोडकर अमेरिका की तरह एक ठोस निर्णय लेना ही होगा की जो भी हमारे देश की ओर आँख उठाएगा वो मिट्टी में मिल जायेगा, जब हम पर युद्ध थोपे जा चुके है हमारे लाख चाहने के बाद भी शान्ति नही हुई तो अब एक युद्ध पूर्ण शान्ति के लिए हमे करना ही होगा क्योंकि खल जाने खल ही की भाषा ओर भय बिन प्रीत ना होए गुसांई जब तक आतंकियों के दिमाग में ये बात नही बैठेगी की भारत आतंकियों की कब्र गाह है तब तक भारत में शान्ति होना कदापि संभव नही है युद्ध किसी समस्या का हल नही है मगर पूर्ण शान्ति के लिए ये युद्ध आवश्यक है, जब शान्ति के सारे रस्ते बंद हो जाये तो कई बार युद्ध अपरिहार्य हो जाते है जसे महाभारत और रामायण के युद्ध शान्ति के लिए अपरिहार्य हो गये थे वैसे ही पाकिस्तान से अंतिम युद्ध अपरिहार्य हो गया है
***नागफनी के पेड़ तले कब प्यार की बाते होती है
युद्ध की बिभीश्का में, पत्नी, बहने, माताये रोती है,***
***पर युद्ध अगर सर पर आ जाये, राह कोई ना और दिखे,
तब यही हमारे भाल पर, विजय तिलक संजोती है***
जय हिंद जय भारत