संघर्ष

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मंगलवार, 27 जुलाई 2010


वन्दे मातरम दोस्तों,

***सत्ता के मद में मदमस्त रहते हैं सत्ताधारी,
उन्हें कहाँ कब चिंता है जनता मरती बेचारी,**********

सुरसा के मुहं की तरह महगाई बडती जाती है
कितना भी कमाइए तनख्वाह कम पडती जाती है,
बच्चों का पेट भर जाये माँ खुद भूखी रह जाती है,
महगाई की मार फिर भी बच्चों का पेट ना भर पाती है,
ए. सी. कमरों में बैठ वो करते बजट की तैयारी,
क्यों कर वो समझ पाएंगे भूके, नंगों की लाचारी,
सत्ता के मद में मदमस्त रहते हैं सत्ताधारी,
उन्हें कहाँ कब चिंता है जनता मरती बेचारी,**********

गरीब के पिचके गाल अमीर खा खा कर के लाल हुआ,
अमीर हुआ नित नित अमीर गरीब और कंगाल हुआ,
जिसके दर्द हुआ ना कभी वो क्या समझेगा बीमारी,
जनता का दर्द कहाँ समझेगे जिन्हें नही जनता प्यारी,
सत्ता के मद में मदमस्त रहते हैं सत्ताधारी,
उन्हें कहाँ कब चिंता है जनता मरती बेचारी,**********

1 टिप्पणी:

  1. सत्ता के मद में मदमस्त रहते हैं सत्ताधारी,
    उन्हें कहाँ कब चिंता है जनता मरती बेचारी,*****

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