संघर्ष

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शनिवार, 3 जुलाई 2010

मन सोच सोच घबरा जाता, क्या यही हमारी थाती है?



***मन सोच सोच घबरा जाता, क्या यही हमारी थाती है?
बाग उजाड़ता खुद माली, बाड़ खेत को खाती है.
***हर घर मैं इक रावण बैठा, करने सीता हरण यहाँ,
लूट पाट करते देखे हैं, दानवीर ये कर्ण यहाँ,
मेहनत कश भूखे बैठे हैं, कर ना पाते भरण यहाँ,
जीना बेहद ही मुश्किल है, सस्ता बेहद मरण यहाँ,
सीता कहकर रावण से, खुद अपना हरण कराती है
***मन सोच सोच घबरा जाता, क्या यही हमारी थाती है?
बाग उजाड़ता खुद माली, बाड़ खेत को खाती है.
***आज दिए से देखो खुद, घर अपना जलने लगता है,
मजबूरी वश बाप ही खुद, बच्चों को छलने लगता,
पेट पलने की खातिर, कोई पेट मैं पलने लगता है,
देख जहाँ की हालत को, मन तिल-तिल गलने लगता है,
बच्चों की भूख मिटने माँ, खुद का सौदा कर जाती है,
***मन सोच सोच घबरा जाता, क्या यही हमारी थाती है?
बाग उजाड़ता खुद माली, बाड़ खेत को खाती है.

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